आज़ादी बोस ने दिलाई… नाम गांधी का हुआ जानिए पूरी कहानी।

यहाँ मैं आपके यहाँ कुछ ऐसे पॉइंट बताने जा रहा हूँ, जिससे आपको पता चलेगा कि भारत देश को आजादी किसने दिलाई थी। तो चलिए देख लेते हैं।

– आजादी के बाद दिल्ली के सिंहासन पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया । खास तौर पर बोस के धुर विरोधी नेहरू का कब्जा हो गया । इसलिए आजादी की सच्ची कहानी आज तक देश के सामने आ ही नहीं पाई

– नेहरू और उनके चुने हुए कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने पूरे इतिहास को विकृत कर दिया और इतिहास की किताबों में भारत छोड़ो आंदोलन को बहुत बढ़ा चढ़ा कर पेश किया

– कांग्रेस के चमचे इतिहासकारों ने आजादी की जो थ्यारी डिज़ाइन की… उसमें ये कहा गया कि 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन की वजह से आजादी मिली

– लेकिन ये थ्योरी भी एकदम हास्यास्पद साबित हुई क्योंकि अगर भारत छोड़ो आंदोलन की वजह से अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो आजादी 1942 में ही मिल जानी चाहिये थी… लेकिन आजादी मिली 1947 में जाकर ।

– दरअसल सच्चाई ये है कि गांधी के आखिरी अहिंसक आंदोलन की अंग्रेजों ने बैंड बजा दी थी । एक हजार से ज्यादा लोगों को अंग्रेजों ने मार दिया और हर कांग्रेसी नेता को अंग्रेजों ने जेल के अंदर डाल दिया ।

– मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी किताब इंडिया विन्स फ्रीडम में बिलकुल साफ लिखा है कि खुद मौलाना आजाद और नेहरू भी भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने के पक्ष में नहीं थे… लेकिन गांधी जी की ज़िद के चलते उन दोनों को आंदोलन में शामिल होना पड़ा ।

– इतना ही नहीं मौलाना आजाद ने साफ साफ ये लिखा कि बाद में गांधी को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने की गलती का अहसास हुआ और उन्होंने जेल के अंदर 20 दिन का उपवास किया ।

– आश्चर्यजनक बात ये है कि गांधी के उपवास से भी उस वक्त ब्रिटिश प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल का दिल नहीं पसीजा । उल्टा चर्चिल ने वायसराय को आदेश दिया कि गांधी के अंतिम संस्कार का इंतजाम कर दो ।

– तब अंग्रेजों ने गांधी जी के लिए चंदन की लकड़ियाँ भी मँगवा ली थी । और ये सब किसी संघ के इतिहासकार ने नहीं बल्कि खुद मौलाना आजाद ने अपनी किताब में लिखा है जो उस वक्त कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे ।

– गांधी फेल हो चुके थे । लेकिन बोस की वजह से इंडियन आर्मी में मौजूद 25 लाख से ज्यादा जवानों के मन में ब्रिटिश क्राउन के प्रति सम्मान एकदम घट गया था ।

– इसकी वजह ये थी कि आजाद हिंद फौज ने बेहद कम संसाधन होने के बाद भी 45 हजार अंग्रेज सिपाहियों को जान से मार दिया था । ये छोटी बात नहीं थी । इसी वजह से इंडियन आर्मी बगावत के मोड में आ चुकी थी ।

– 1946 में जब कराची नौसेना के 20 हजार जवानों का विद्रोह हो गया तब अंग्रेजों को 1857 में कानपुर का वो चर्च याद आने लगा जब पेशवा नाना साहेब और उनके सिपाहियों ने अंग्रेजों की बोटी-बोटी काट दी थी। ।

– 1857 के दौरान हुआ रक्तपात कहीं दोबारा 1947 में ना हो जाए और इस बार तो सामना 25 लाख की आर्मी से होने जा रहा था जो खुद अंग्रेजों के द्वारा ही ट्रेन्ड की गई थी । इसी भय के मारे अंग्रेज भारत को छोड़ने के लिए मजबूर हो गए थे ।

– लेकिन दुर्भाग्य देखिए… बोस ग़ायब हो गए और देश को आजाद करवाने का क्रेडिट गांधी और उसके चेले नेहरू ने ले लिया

– लेकिन इतने प्रोपागेंडा चलाने के बाद भी कांग्रेस और उसके चमचे बोस को लोगों के दिलों से नहीं मिटा सके

– वर्ष 1945 से वर्ष 1951 के बीच क्लीमेंट एटली ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे । इसी दौरान भारत को आज़ादी दी गई थी।

– आज़ादी के बाद क्लीमेंट एटली ने भारत का दौरा किया था । क्लीमेंट एटली ने उस वक्त पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से कहा था कि आजादी की लड़ाई में गांधी का प्रभाव Minimal यानी कम से कम था ।

– इस घटना का जिक्र उस वक्त पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे पीबी चक्रवर्ती ने इतिहासकार R C मजूमदार को लिखे एक पत्र में कही थी

आजादी का सच्चा इतिहास जानिए.. अहिंसा से कभी किसी को कहीं कुछ हासिल नहीं हुआ

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