M.P. पंचायत चुनाव निरस्त। खर्च हुए 250 करोड़, क्या होगा आगे

निर्वाचन आयोग ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया निरस्त करके अंततः राज्य सरकार की चाह पूरी कर दी। इस तरह से फिलहाल मध्यप्रदेश में अभी पंचायत चुनाव नहीं होंगे।

मंगलवार को राज्य निर्वाचन आयुक्त बसंत प्रताप सिंह ने कानूनी सलाह के बाद यह घोषणा की। यह निर्णय पहले चरण के मतदान से ठीक 9 दिन पहले लिया गया है। ऐसे में इस चरण के लिए नामांकन दाखिल कर चुके करीब 1.37 लाख मीदवारों की फीस वापस होगी। बीते रविवार को राज्य सरकार ने उस अध्यादेश को रद्द कर दिया था, जिसके आधार पर ये चुनाव कराए जा रहे थे। इसलिए आयोग को भी चुनाव निरस्त करने का कदम उठाना पड़ा। अब आयोग इसका हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में देगा। इससे पहले बसंत प्रताप सिंह ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास के प्रमुख सचिव उमाकांत उमराव, वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ सेठ सहित दो अन्य वकीलों से चर्चा की। फिर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता व सुप्रीम कोर्ट के दो अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की। फिर चुनाव निरस्ती का फैसला लिया।

उल्लेखनीय है कि आयोग में सोमवार को तीन बार बैठकें हुई थीं। इस दौरान आयोग के अधिवक्ता सिद्धार्थ सेठ का लीगल ओपिनियन अफसरों को मिला था, लेकिन दो अन्य वकीलों की कानूनी सलाह नहीं मिल पाई थी। इसकी वजह से मंगलवार तक के लिए फैसला टाल दिया गया था।

आयोग ने पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज संशोधन अध्यादेश-2021 के आधार पर 4 दिसंबर को पंचायत चुनाव का कार्यक्रम घोषित किया था। इसमें वर्ष 2019 तक में पंचायतों के परिसीमन को निरस्त करके पुराने आरक्षण के आधार पर चुनाव कराए जा रहे थे, जिसे विभिन्न याचिकाकर्ताओं द्वारा न्यायालयों में चुनौती दी गई थी। इसी याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित पदों के चुनाव पर रोक लगाते हुए शेष प्रक्रिया को जारी रखने के आदेश दिए थे।

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अब आगे क्या : दो मांगें पूरी, सिर्फ OBC आरक्षण पर सुनवाई 3 को

राज्य और केंद्र सरकार ने पंचायत चुनावों को सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं लगाई हैं। इनमें दो प्रमुख मांगें हैं। पहली चुनाव 4 महीने आगे बढ़ाए जाएं। दूसरी- चुनाव प्रक्रिया स्थगित की जाए। फिलहाल ये दोनों ही पूरी हो गई हैं। अब सिर्फ पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर 3 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होना है।

विधि विशेषज्ञों की राय: जब आधार ही खत्म हो गया तो कैसे चुनाव!

विधि विशेषज्ञों ने अभिमत दिया कि जिस अध्यादेश के आधार पर चुनाव प्रक्रिया संचालित की जा रही थी, जब वो ही समाप्त हो गया तो फिर चुनाव कराने का कोई औचित्य ही नहीं बचा था। दरअसल, अध्यादेश वापस लेने से वह परिसीमन पुनः लागू हो गया, जिसे निरस्त किया गया था। 1200 से ज्यादा पंचायतें फिर अस्तित्व में आ गईं। ऐसी स्थिति में चुनाव कराया जाना संभव ही नहीं था।

2.15 लाख उम्मीदवार खर्च कर चुके थे 250 करोड़।

1.चुनाव प्रक्रिया 21 नवंबर को शुरू हुई थी। पहले दो चरण के मतदान की तैयारी पूरी थी। अभी तक जिला और जनपद सदस्य, सरपंच और पंच के लिए 2 लाख 15 हजार 35 आवेदन प्राप्त हुए थे, जिनमें एसटी, एससी, ओबीसी और महिलाओं के लिए नामांकन के साथ अमानत राशि के रूप में आधी फीस जमा करना थी, जिनकी संख्या 78 हजार के करीब थी। इसके अलावा करीब 1 लाख 37 हजार उम्मीदवारों ने पूरी फीस जमा की थी। इन उम्मीदवारों से अमानत राशि करीब 20 करोड़ रुपए हुई थी, जो अब वापस होगी।
2.जिला और जनपद सदस्य तथा सरपंच-पंच के लिए मैदान में उतरे उम्मीदवारों ने नामांकन के बाद से ही सवा महीने में चुनाव प्रचार में 250 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए। पंचायत चुनाव दलीय आधार पर न होने से इन उम्मीदवारों में कई ने तो जमीनें बेचकर चुनाव खर्च के लिए पैसे जुटाए, उनकी यह राशि बेकार चली गई।
3.चुनाव ऐलान के बाद से अब तक सरकार भी प्रशासनिक मीटिंग बुलाने, ईवीएम मशीनों की चैकिंग, मतपत्र छपवाने पर 15 करोड़ रु. खर्च कर चुकी है।

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